Thursday 8 October 2015

दयालू चोर

दयालू चोर


“ दयालू चोर “ चोरों का एक समूह चोरी के उद्देश्य से एक गाँव में आया | यहाँ वहां घूम घूम कर अंदाज लगाया की कहाँ चोरी करना उचित होगा |जब रात हो गई अन्धकार धना होने लगा वे बिना आहट किये एक मकान के पीछे पहुंचे |वहां इतनी शान्ति थी कि लग रहा था पूरा मकान खाली होगा |कुदाल की सहायता से दीवार में मोखला बनाया और अन्दर कदम रखे परन्तु हलकी आहट से सोये हुए घरवाले जाग गए |अतः जिस रास्ते से आये थे भाग निकले |हाथ कुछ भी न लगा | खबर गलत निकली निराशा हाथ लगी पर सोचा एक कोशिश तो की ही जा सकती है|गाँव के दूसरे छोर पर एक कच्चे मकान में छेद किया और अन्दर कदम रखे | देखा एक व्यक्ति फटे कपड़ों में लिपटा जमीन पर सो रहा था |आसपास कुछ टूटे टाटे बर्तन थे | वह आदमी न हिला ना डुला ना ही कोई प्रतिक्रया की |चोर ने दरवाजा खोला और बाहर जाने लगा |पीछे से आवाज आई अरे भाई आए हो तो कुछ दे कर जाओ जिससे कल रोटी की जुगाड़ हो सके | पहले तो चोर चौंका फिर उसकी गरीबी देख मन में दया उपजी |जेब से एक रुपया निकाला और फैक कर चल दिया |सोच रहा था दिन ही खराब था कमाया तो कुछ नहीं और जेब भी खाली हो गई |

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