एक आश्रम में गुरू और शिष्य रहते थे। एक दिन शिष्य गुरू के पास आया और बोला कि एक व्यक्ति आश्रम में आया है आैर वह अपनी भैसों को कुछ समय के लिए हमारे आश्रम में भैसों को छोडना चाहता है गुरूजी ने शिष्य की बात सुनकर बडे शांत मन से कहा कि चलो अच्छा है, दूध पीने को मिलेगा! कुछ समय बाद शिष्य ने आकर गुरू से कहा: गुरू जी ! जिस व्यक्ति ने अपनी भैसों को हमारे आश्रम में छोडी थी, आज वह अपनी भैसो को वापिस ले जाना चाहता है! शिष्य की बात सुनकर गुरू ने कहा:- चलो अच्छा हुआ! गोबर उठाने की झंझट से मुक्ति मिलेगी “इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि… ‘परिस्थिति’ बदले तो अपनी ‘मनोस्थिति’ बदल लो, दुख सुख में बदल जायेगा! “सुख दुख आख़िर दोनों मन के ही तो समीकरण हैं।”
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