मैं उसके सामने उसकी माँ को गलत कह सकती हूँ मगर वह मेरे माँ-बाप का सम्मान करेगा।
मैं घर की नयी महारानी हूँ और सबको मेरी बात माननी होगी।
पति को मुझमें और अपनी माँ में से किसी एक का चुनाव करना होगा।
मैं चाहती हूँ कि मेरे भाई-भाभी मेरे माँ-बाप को साथ रखकर देखभाल करें, मगर मैं और मेरा पति सास-ससुर से अलग रहकर अपना व्यक्तिगत जीवन जियें।
आइये ज़रा दूसरा पहलु देखें-
मैं खुद हनुमान जी की वानर सेना का सदस्य रहा हूँ, मगर मेरी पत्नी विश्व-सुंदरी होनी चाहिए।
मैं नवाब हूँ और ऐसा ही रहूंगा, उसे मेरे अनुसार ढलना होगा।
खुद के पैसों से कभी साइकिल तक नहीं खरीदी, मगर दहेज़ में तो चार पहिया वाहन ही चाहिए।
मैं उसकी माँ को सास मानूंगा लेकिन उसे मेरी माँ को माँ मानना होगा।
वह घरकी लक्ष्मी नहीं है लेकिन मैं 'पतिदेव' हूँ।
ज़ाहिर सी बात है ऐसी उम्मीदें हर किसी को नहीं होती मगर जिनको भी होती है बेहद मज़ाकिया है!
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