सच्चा धन
अपनी यात्रा के दौरान एक बार गुरु नानक एक गाँव में पहुंचे. उनके आने की खबर सुन उस गाँव का सबसे अमीर आदमी उनके पास आया. उसे अपने धन का बहुत घमंड था. वह गुरु नानक के पास आकर बोला – ‘यदि आप आज्ञा दें तो मैं अपना सारा धन आपके चरणों में अभी तुरंत समर्पित कर दूँ.’ उसकी अहंकार पूर्ण बातें सुन गुरुनानक देव ने मुस्कुराते हुए कहा – ‘मैंने हजारों धनवान लोगों को देखा है लेकिन तुम्हारे जैसे निर्धन को कभी नहीं देखा.’ धनी व्यक्ति बोला – ‘महाराज! आप मेरे वस्त्रों पर ना जाएँ. मेरे गाँव के किसी भी व्यक्ति से मेरे बारे में पूछ सकते हैं. आप मुझे कोई भी कार्य दें मैं उसे जरुर कर दूंगा.’ उसकी अहंकारपूर्ण बातें सुन गुरु नानक देव ने अपनी झोली से एक सुई निकाल कर उस व्यक्ति को देते हुए कहा – ‘देखो, यह सुई ले जाओ. जब हम दोनों मर जायेंगे तब तुम इसे लौटा देना.’
गुरु जी की बातें सुन वह धनवान व्यक्ति हैरान हो गया, वह उन्हें प्रणाम कर वहां से चला गया और सोचता रहा- ‘आखिर मरने के बाद इस सुई को कैसे लौटा पाऊंगा. तुम कोई उपाय बताओ.’ मित्र ने कहा – ‘यह असंभव है, मरने के बाद इस संसार की कोई भी वस्तु हम अपने साथ नहीं ले जा सकते. मरने के बाद यह शरीर भी यहीं रह जाता है, गुरुनानक देव तुम्हें कुछ सिखाना चाहते हैं. तुम उन्हीं के पास जाओ.’ मित्र के कहने पर धनी व्यक्ति गुरूनानक देव के पास आया. वह उनके चरणों में गिर पड़ा. उसने विनयपूर्वक कहा- ‘गुरू जी! आप अपनी सुई वापस ले लीजिए. मरने के बाद मैं इसे आपको नहीं लौटा सकता. मृत्यु के बाद कोई व्यक्ति भी किसी सांसारिक वस्तु को अपने साथ नहीं ले जा सकता.’ गुरुनानक देव ने कहा- ‘तुमने कहा था, तुम्हारे पास बहुत धन है, तुम उससे कुछ भी कर सकते हो.’ धनी व्यक्ति ने दुखी होते हुए गुरुनानक देव के चरण पकड़ लिए और अपने अज्ञान की माफी माँगने लगा. गुरु नानक देव ने उसे समझाते हुए कहा- ‘पुत्र ! दूसरों का भलाई करना सबसे बड़ा धन है. हमेशा सत्य के मार्ग पर चलना, ईमानदारी से कार्य करना, अहंकार से दूर रहना. मृत्यु के बाद यही सच्चा धन हमारे साथ जाता है. अच्छे कर्मों से संसार का भी भला होता है और अपना भी.’ गुरुनानक देव के वचन सुनकर धनी व्यक्ति की आँखे खुल गई. उसे सच्चे धन का ज्ञान हो गया था.
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