शहादत
एक बार एक ही दिन तीन लोगों की मृत्यु हुई. यमदूत तीनों को चित्रगुप्त महाराज के पास ले गए. तीनों के कर्मों का हिसाब किताब करने के बाद उन्हें स्वर्ग भेज दिया गया. स्वर्ग में जाने के बाद साधु महाराज ने देखा - ये क्या! एक मामूली सा किसान उनसे ऊँचे सिंहासन पर आसीन है और एक मामूली सेना के जवान को बिलकुल धर्मराज के बगल में बैठा देख साधु महाराज बैचैन हो गए. उनसे रहा नहीं जा रहा था. क्या करें, किससे पूछें. तभी उन्हें चित्रगुप्त जी आते दिखाई पड़े. साधु भागकर उनके पास गए. हाथ जोड़ते हुए पूछा - चित्रगुप्त महाराज! मैंने जिन्दगी भर भगवान का भजन किया. मोह-माया से बचने के लिए शादी विवाह तक नहीं किया. अपने मन को वश में रखा और भिक्षाटन से प्राप्त अन्न से अपना निर्वाह किया. फिर भी उस किसान को मुझसे ऊँचा स्थान क्यों मिला?
चित्रगुप्त ने कहा - साधू जी! यह बात सही है कि आपने निरंतर भगवान का भजन किया और अपना जीवन भिक्षाटन से प्राप्त अन्न पर किया और उस किसान ने दिन में सिर्फ दो बार भगवान का नाम लिया. लेकिन यह भी तो देखिये उसने अपने परिवार, खेती बारी, माल -मवेशी सबसे प्यार किया, उनका ध्यान रखा लेकिन इतने कार्यों के बाद भी भगवान को स्मरण करता रहा. इसलिए उसे आपसे ऊँचा दर्जा प्राप्त हुआ. साधु ने फिर पूछा - और उस नौजवान का जो इतने कम उम्र का होते हुए भी सीधे धर्मराज के बगल में स्थान पा लिया. चित्रगुप्त गंभीर स्वर में बोले - हे साधु महाराज! वह नौजवान नहीं एक शहीद नौजवान है. उस नौजवान ने अपने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण दिए हैं. उसकी वीरता, उसका त्याग और बलिदान किसी भी सांसारिक भक्ति से ऊँचा और सर्वश्रेष्ट है. ऐसे लोगों को यहाँ स्वर्ग में भी अति विशिष्ट स्थान प्राप्त होता है और वे धर्मराज के भी अतिप्रिय होते हैं. साधु महाराज सिर झुकाए वहां से चले गए.
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