कछुआ और गरुड़
एक कछुआ यह सोच कर बड़ा दुखी रहता था कि पक्षिगन बड़ी आसानी से आकाशमें उड़ सकते हैं, परन्तु में नहीं उड़ पाता| वह मन ही मन सोच-विचारकर इस नतीजे पर पहुंचा कि यदि कोई मुझे एक बार भी आकाशमें पहुंचादे, तो फिर में भी पक्षियों के सामान ही उड़ते हुए सैर करूँगा| उसने एक गरुड़ पक्षी के पास जाकर कहा "अगर आप दया करके मुझे एक बार आकाश में पहुंचा दो, तो में समुन्द्र के नीचे पड़े सारे रत्न निकाल कर आप को दे दुँगा| " मुझे आकाश में उड़ते हुए सैर करने की बड़ी इच्छा हो रही है|
कछुए की प्रार्थना सुनकर गरुड़ बोला "तुम जो चाहते हो उसका पूरा होना असम्भव है| जमीन पर चलने वाला प्राणी कभी आकाश में नहीं उड़ सकता| तुम अपनी यह कामना को त्याग दो| यदि में तुम्हें आकाश में पहुंचा भी दूँ तो तुम उसी समय गिर जाओगे और हो सकता है इस से तुम्हारी मौत भी हो जाए"| परन्तु कछुआ नाहीं माना, उसने कहा- "बस एक बार आप मुझे ऊपर पहुंचा दो, मैं उड़ सकूँगा और उडूँगा, अगर नहीं उड़ सका तो गिर कर मर जाउगा| इसके लिए आप को चिंता करने की जरुरत नहीं है|" इस प्रकार कछुआ गरुड़ से बार बार अनुरोध करने लगा| तब गरूर ने हंस कर कछुए को उठा लिया और उसे काफी ऊंचाई पर पहुंचा दिया| उसके बाद गरुड़ ने कहा-अब तुम उड़ना शुरू करो' इतना कहकर गरुड़ ने कछुए को छोड़ दिया| उसके छोड़ते ही कछुआ एक पहाड़ी पर जा गारा और गिरते ही उसके प्राण चले गए| इसलिए आदमी को अपनी क्षमता के अनुसार ही इच्छा(कामना) रखनी चाहिए, नाहीं तो बहुत दुःख उठाने पड़ सकते हैं|
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