Wednesday 23 September 2015

“तुम तो ऐसे गायब हुए, जैसे गधे के सिर से सींग

यह उस समय की कहानी है जब यह दुनिया नई नई बनी थी। पृथ्वी पर मनुष्यों ने फैल कर बस्तियां बसा ली थीं। पशु जंगलों में फिरा करते थे। लोगों ने गाय भैंसों को पाल कर उनका दूध निकालना शुरू कर दिया था। उनके बछड़ों को बेल बनाकर खेती बाड़ी का काम लेने लगे थे, लेकिन गधे को किसी न पकड़ा था। वह अन्य जानवरों के साथ जंगल में फिरा करता था। तब गधा ऐसा नहीं था जैसा अब है। उस समय उसके सिर पर दो बड़े-बड़े सींग थे, लेकिन गधे को अपने सींगों की खबर नहीं थी। जंगल में आईना तो था नहीं जो कोई अपना दर्पण में देख लेता और फिर जंगल में आईना कहाँ से आता आदमियों ने अभी आईना नहीं बनाया था। तो गधा हरनों, बारह सनघों को देखकर सोचा करता था कि मैं उनसे डील डोल में बहुत बड़ा हूँ, अगर उनकी तरह मेरे भी सींग होते तो मैं सबसे रोब दार होता। इसी धुन में एक दिन वह नदी पर गया। उस दिन नदी का प्रवाह रुका हुआ था और पानी ठहरा हुआ था। क्या आप जानते हैं गधे के सिर से सींग कैसे गायब हुए? गधे ने जैसे ही प्यास मिटाने के लिए पानी में मुँह डाल उसे अपना चेहरा पानी में नजर आया। हैरान होकर देखने लगा कि उसके सिर पर तो दो लम्बे सींग हैं। वह अपनी अगली पैर तो सिर पर नहीं फेर सकता था। यह मूल्यांकन करने के लिए कि सचमुच उसके सींग हैं, जल्दी-जल्दी पानी पीकर वहां से चल दिया। एक केले के पेड़ सामने था। इसमें सींग मार कर देखा। सींग की नोक तने में घुस गई। अब तो गधा बहुत खुश हुआ और सींगों को हिलाता हुआ आगे चला। एक खरगोश उछलता कूदता जा रहा था। गधा उसे डांट कर रोका। खरगोश सहम कर खड़ा हो गया। गधे ने कहा: एक सींग अाेड़ूं मोड़ूं एक सींग से पत्थर तोड़ों, आ रे खरगोश के बच्चे पहले तेरा ही पेट फोड़ों खरगोश डर गया और मुंह बसूरते हुए बोला: “मैंने क्या कसूर क्या है?“ गधे ने अकड़ कर कहा: “तो बहुत गुस्ताख़ है। मेरे सामने से छलाँगें लगाता हुआ चला जाता है। ठहर कर अदब से मुझे अभिवादन नहीं करता।“ खरगोश ने माफी मांगी और पिछली दोनों पैर पर खड़े होकर और अगली टांग एक माथे पर रखकर अभिवादन किया। गधा यह कहकर कि अब कभी अभिवादन किए बिना मेरे सामने से न जाना, आगे चल दया। थोड़िय दूर पर एक गीदड़ मिला। गधे ने उसे भी रोक कर कहा: एक सींग अाेड़ूं मोड़ूं एक सींग से पत्थर तोड़ों, आ रे गीदड़ के बच्चे पहले तेरा ही पेट फोड़ों गीदड़ तो डरपोक होता ही है। इतने बड़े गधे को यह धमकी देते देखकर कांपने लगा और झिझकते झिझकते बोला: “गधा साहब अगर मुझसे कोई दोष हुई है तो आप बड़े हैं, मैं छोटा समझ कर माफ कर दें।“ गधे ने भी यही कहा: “तुम बे अदब हो, मुझे अभिवादन नहीं करते।” गीदड़ ने भी गर्दन झुका कर बड़ी विनम्रता से अभिवादन किया। यहाँ से भी गधा आगे चला तो लोमड़ी मिली। लोमड़ी बड़ी मक्कार और चालाक होती है। वह गधे को अकड़ते इतराते देखकर समझ गई कि यह मूर्ख जानवर आज किस कारण से ऐंठ रहा है। जैसे ही गधा करीब आया, बोली: “गधे साहब आदाब अर्ज़ करती हूं। इस समय कहां जा रहे हैं?“ गधे ने कहा: “आज जंगल के गुस्ताख़ जानवरों साहित्य और भेद सिखाने निकला हूं, जो पशु मुझे अभिवादन नहीं करता, उससे कहता हूँ: एक सींग अाेड़ूं मोड़ूं एक सींग से पत्थर तोड़ों, आ रे लोमड़ी के बच्चे पहले तेरा ही पेट फोड़ों लोमड़ी बड़ी अनुभवी थी। उसे पता था कि मनुष्य, पशु से बड़ा बुद्धिमान होता है। उसने ऊंट और घोड़े जैसे बड़े जानवरों को गुलाम बना लिया है। उसने सोचा कि इस मूर्ख गधे को भी इंसान तक पहुंचाना चाहिए। इसलिए कहने लगी: “एक आदमी को मैंने जंगल के किनारे देखा था। चार पैर से चलने वाले जानवर तो बेचारे सीधे सादे हैं, तो आप इस जानवर को ठीक करें जो दो पैर से सिर उठाकर चलता है। आप की तुलना में है तो दुबला पतला मगर बहुत गुस्ताख़ और बड़ा क्रूर है। “ गधे ने पूछा: “क्या उसके सींग मेरे सींगों से भी बड़े हैं?” लोमड़ी ने कहा: “बड़े छोटे कैसे, उसके तो सिरे से सींग ही नहीं। अहंकार में डूबा रहता है और हम सब जंगली जानवरों से अपने आप को बेहतर समझता है।“ गधे ने फिर पूछा: “क्या उसका मुँह मेरे मुँह से बड़ा है? और उसके लम्बे नुकीले दांत हैं?“ लोमड़ी ने कहा: “नहीं, कलखया की तरह थोड़ा सा मुँह है और घास खाने वाले हिरण चकारों जैसे छोटे दांत हैं। अगले पैर जिनसे वह चलता नहीं, उन्हें हाथ कहता है, पिछली टांगें भी पतले और छोटे हैं। कान इतने जरा-सी है कि आप के एक कान से उनलोगों के कई कान बन सकता है। बस शेख़ी ही शेख़ी है। “ गधे ने कहा: “मुझे बताओ वह किधर है? मैं अभी जाकर उसकी सारी शेख़ी किरकिरी कर दूँ?” लोमड़ी ने जिस जगह आदमी को देखा था। इशारा करके बता दिया और गधा फों फ़ां करता हुआ उस ओर चल दिया। जो आदमी वहाँ फिर रहा था उसने उन्नत एसिड बनाया था। उसे बोतल में लिए उसका परीक्षण जंगली जानवरों की हड्डियों पर डाल डालकर कर रहा था कि वह उसे गला पाती है कि नहीं। एक हड्डी को गलते देख कर वह अपनी सफलता पर खुश हो रहा था कि गधा वहां पहुंचा। आदमी के डील डोल को देखकर दिल में हंसा कि अगर इसे गिरा कर मैं इस पर गिर पडूं तो यह मेरे बोझ से कुचल कर रह जाएगा। बड़ी आन से सिर उठाकर बोला: एक सींग अाेड़ूं मोड़ूं एक सींग से पत्थर तोड़ों, आ रे आदमी के बच्चे पहले तेरा ही पेट फोड़ों उस आदमी ने जो यह सुना तो बड़े आराम से गधे को देखा और बोला: “मैं तो आपको निमंत्रण करने आया हूं और आप मेरा ही पेट फोड़ चाहते हैं। यह कैसी उलटी बात है?“ गधे ने कहा: “मेरी दावत …..! किस बात की? मेरे खाने के लिए जंगल में घास बहुत है।“ आदमी ने जवाब दिया: “घास क्या है! मैं आपको ऐसी उम्दा चीज खुलाउंगा, जो आपने कभी न खाई हो, मेरा एक केसर का खेत है जो लहलहा रहा है और बहुत सुगन्धित है। आप इसे चरेंगे तो आप की सांस से ऐसी सुगंध निकलेगी कि सारा जंगल महक उठेगा और सब पक्षी हैरान हो कर आपसे पूछेंगे कि यह महक आप में कैसे उत्पन्न हो गई? उसे खाने से आप इतने खुश होंगे कि हर समय हंसते रहा करें होगा। “ गधा आखिर गधा था आदमी की बातों में आ गया और कहने लगा: “लोमड़ी बड़ी झूठी है। वह तो कहती थी कि आदमी बहुत बुरा होता है। तुम तो बहुत अच्छे हो। जल्दी से मुझे केसर के खेत पर ले चलो।“ आदमी गधे को साथ लेकर अपनी बस्ती का रुख किया जो वहाँ से बहुत दूर थी। थोड़ी दूर चलकर आदमी ने गधे से कहा: “आपके चार पैर हैं और में दो पैर से चलता हूँ, आपका साथ नहीं दे सकता। यदि आप बुरा न मानें तो मैं अपनी पीठ पर बैठ जाऊँ और रास्ते बताता हुआ चलूँ। “ गधे ने केसर के लालच में उसकी बात मान ली और आदमी गधे पर सवार हो गया। अभी दोनों कुछ ही दूर गए थे कि आदमी बोला: “गधे मियां! आप उछालते हुए बहुत तेज तेज चलते हैं, मैं कहीं गिर न पडूं। अगर अनुमति हो तो मैं आपके सींग हाथों से पकड़ लूं?“ गधे ने अनुमति दे दी। आदमी ने सींग ऊपर से पकड़ कर सींगों की जड़ों पर एसिड की बूँदें टपका दिए। जरा देर में दोनों सींग टूटकर गिरने लगे। आदमी ने उन्हें हाथ में लेकर पीछे की ओर जोर से फेंक दिया। गधा का मुँह आगे की ओर था, वह क्या देखता, उसे पता भी नहीं चला और दोनों सींग गायब हो गए। चलते चलते बहुत देर हो चुकी थी। गधे को थकने लगा तो बोला: “हे आदमी! इतनी दूर तो आ गए, केसर का खेत कहाँ है?“ आदमी बस्ती तक उस पर सवार होकर जाना चाहता था, बोला: “थोड़ी दूर और चलो।“ गधे को संदेहहुआ कि यह आदमी धोखा देकर कहीं मेरी पीठ पर तो सवार नहीं होना चाहता था, कहने लगा: “मेरी पीठ से उतरो और मुझे बताओ! वह केसर का खेत कहाँ है?“ आदमी गधे पर से उतरा और पेड़ की एक डाल तोड़कर उससे डंडा बनाने लगा। गधे को आदमी के ठहरने पर गुस्सा आ गया। भूख भी लगी हुई थी, झनजला बोला: “हे आदमी! तू केसर नहीं खिलाएगा?“ आदमी ने कहा: “कहीं गधा भी केसर खाते हैं?“ इस पर गधा आदमी को मारने पर उतारू हो गया और अपनी बात दोहराई: एक सींग अाेड़ूं मोड़ूं एक सींग से पत्थर तोड़ों, आ रे आदमी के बच्चे पहले तेरा ही पेट फोड़ों यह सुनकर आदमी हंसा और बोला “गधे तेरे सींग कहाँ हैं? वह तो गायब हो गए। अब तू क्या मेरा पेट फोड़ेगा। जिधर मैं कहूँ सीधा सीधा चल, नहीं तो मैं डंडे से मार-मार के तेरी खाल उधेड़ दूंगा।“ गधे ने अपना सिर एक पेड़ से टकरा कर देखा तो पता चला कि सिर पर सींग मौजूद ही नहीं। आदमी ने डंडे की मार से अपने घर के रास्ते पर लगा लिया और दरवाजे के आगे खूंटे गाड़ कर एक रस्सी से बांध दिया। अब गधा बेचारा आदमी का बोझ ढोते है, सवारी का ककम देता है, बोझ खींचता है और अपनी इस बेवकूफ पर पछताता है कि सींग पाकर मैं इतना अभिमानी क्यों हो गया था। उसे उस समय सख्त शर्मिंदगी होती है जब कोई आदमी बिना कहे सुने चला जाता है तो फिर मिलने पर लोग इससे कहते हैं: “तुम तो ऐसे गायब हुए, जैसे गधे के सिर से सींग।”

No comments:

Post a Comment