Wednesday 23 September 2015

स्वदेश सबसे प्यारा

स्वदेश सबसे प्यारा
किसी गाँव में कुत्तों की एक टोली रहती थी. चित्रांग नाम का कुत्ता सबसे बुड्ढा पर होशियार था. वह सबको अच्छी अच्छी बातें बताता रहता था. सबको वफ़ादारी और नेकी का पाठ पढ़ाते रहता था. एक दिन एक युवा कुत्ता हीरा ने पुछा - बाबा स्वदेश और परदेश में क्या फर्क है? चित्रांग ने वहां उपस्थित सभी कुत्तों को यह कहानी सुनायी. एक बार एक चिड़ीमार ने दो तोते पकडे. दोनों तोता को एक सेठ को बेच दिया. सेठ ने एक तोता को अपने पास रखा और दुसरे को अपने मित्र को दे दिया. उसका मित्र उसे अपने साथ परदेश ले गया. एक बार सेठ का परदेशी मित्र अपने दोस्त के पास गया. उसने वहां तोते से पुछा - कहो क्या हाल है ? अगर तुम्हारा कोई सन्देश है तो बताओ तुम्हरे मित्र को दे दूंगा. तोता रो पड़ा. जब सेठ का मित्र गया तो उसने उस तोते को यह बताया कि जब मैंने तुम्हारे मित्र को यह बताया कि वह मेरे पास है. सोने के पिंजरे में रहता है. मेवा मिठाई खाता है तो उसने आसूं गिरा दिए. यह सुन सेठ का तोता ऐसा उल्टा मानो मर गया हो. सेठ ने मारा जान उसे छोड़ दिया. पिंजरे से निकलते ही वह तोता उड़कर जंगल में अपने पेड़ पर जा बैठा. कुछ दिनों बाद सेठ का दोस्त जब अपने घर गया तो सारी बात अपने तोते को बताई. उस तोते ने भी वैसा ही किया. स्थ ने उसे भी फिकवा दिया. वह भी उड़कर अपने दोस्त के पास चला गया. उसने अपने दोस्त से कहा : नहीं चाहिए सोने का पिंजरा. आजादी और स्वदेश सबसे प्रिय होता है. इस बात पर हीरा नामक कुत्ता बोला - नहीं बाबा! मुझे अगर अच्छा खाना मिले तो मैं विदेश में ही रहना चाहूँगा. कुछ समय बाद वहां भारी अकाल पड़ा. हीरा भागकर शहर चला गया और एक गृहस्थ के यहाँ रहने लगा. जब गृहिणी घर पर नहीं होती रसोई से चुराकर रोटी ले आता लेकिन जैसे ही बाहर निकलता वहां के लोकल कुत्ते उसपर टूट पड़ते और उसे लहूलुहान कर उसकी रोटी छिन लेते. अब उसे स्वदेश का मर्म समझ आया. कुछ दिनों बाद वह स्वदेश लौट आया और चित्रांग को प्रणाम कर बोला - बाबा ! आप ठीक कहते थे. स्वदेश का मूल्य परदेश में ही समझ आता है.

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