Monday 21 September 2015

शुद्ध पवित्र

शुद्ध पवित्र
(भक्त कबीर जी के जीवन से जुड़ी कहानी) एक बार बेणी पंडित जी देश भर में अपनी विद्धवता की धाक जमाते हुए बड़े-बड़े विद्वानों को शास्त्रार्थ में हराते हुए काशी पहुंचे। यहाँ के पंडितों ने सोचा की उन्हें शास्त्रार्थ में परास्त करना असंभव है। इस हार से बचने के लिए उन्होंने एक चाल चली। उन्होंने तय किया की कबीर भक्त को बेणी से शास्त्रार्थ के लिए कहा जाए। इस प्रकार एक तीर से दो शिकार करने की योजना तैयार की गई। यदि कबीर हार जाते हैं तो उनका कबीर से पिण्ड छूट जाता है क्योंकि कबीर जी ने उनकी पोल खोलने की सौगन्ध खा रखी थी। और यदि कबीर जी की जीत होती है है तो ये काशी नगरी की जीत मानी जाएगी। इस प्रकार पंडित मण्डली की लाज भी बच जाएगी। कबीर जी ने उनकी याचना को सहर्ष स्वीकार कर लिया, क्योंकि उनके ह्रदय में सत्य की ज्योति जगमगा रही थी, उनको कैसा भय। और इस तरह शास्त्रार्थ की घोषणा कर दी गई। भक्त कबीर जी पूर्ण ब्रह्मज्ञानी थे। उन्हें प्रभु कृपा से एक बात सूझी की जब बेणी पंडित जी प्रात: काल शौचादि के लिए बाहर जंगल में जाएं और जब वह पेट साफ़ करने के लिए बैठें तो उन्हें राम राम बुलाई जाए। अस्तु, उन्हों ठीक वैसा ही किया। जब पंडित बेणी पेट साफ़ करने के लिए बैठे तो कबीर जी ने जोर-जोर से कहना आरम्भ: कर दिया,"पंडित जी राम-राम" पंडित जी ने अपवित्र अवस्था में होने के कारण उत्तर नहीं दिया। कबीर जी बार बार राम राम बुलाने लगे तो पंडित जी ने क्रोध में आकर मिटटी का एक ढेला मारा जो कबीर जी के माथे पर लगा। प्रात: चार बजे का समय होने के कारण बेणी जी कबीर जी को इस रूप में पहचान नहीं सके थे। जब शास्त्राथ आरम्भ हुआ तो कबीर जी ने बड़े आदर से पंडित जी से पूछा, " क्या आप बता सकते हैं की आप ने प्रात: काल मेरी राम-राम का उत्तर क्यों नहीं दिया?" पंडित जी पहले तो कुछ सटपटाए, पर फिर उत्तर देते हुए कहने लगे की क्या आप जानते नहीं की उस समय मैं अपवित्र अवस्था में था। "ठीक है," कबीर जी ने फरमाया, "पर क्या मैं पूछ सकता हूँ की फिर कौन सा साधन अपना कर आप पवित्र हुए?" पंडित जी ने दिल्ल्गी करते हुए कहा, "भगत जी, क्या आप इतना भी नहीं जानते की शौच आदि के बाद मिटटी से हाथ मल कर अच्छी तरह से पानी से धो लिए जाते हैं और शुद्ध हो जाते हैं।" कबीर जी ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया, "पंडित जी, मल भी तो मिटटी का ही रूप है। अंततः यह मल भी मिटटी में ही मिल जाता है। और जब हम मिटटी से हाथ मांजते हैं तो करोड़ों जीवाणुओं का जाने-अनजाने में हनन हो जाता है। और पानी, थोड़ा सोच कर देखो की पानी में करोड़ों जीव रहते हैं। मछली आदि जीव पानी में मल विसर्जन करते हैं। यह पानी हमें इस कथित अपवित्र स्थिति से छुटकारा कैसे दिलवा सकता है? ठीक इसी तरह पंडित जी, वायु आदि में भी जीवाणु विध्यमान हैं। अस्तु, संसार की ये भौतिक शक्तियां हमें पवित्र कर पाने में असमर्थ हैं।

No comments:

Post a Comment