Wednesday 23 September 2015

बहरा कौन?

बहरा कौन?
पतिदेव महाशय को कई दिनों से लग रहा था कि मैं जो कुछ भी बोलता हूँ पत्नी जी उसका जबाब नहीं देती. कहीं कान का प्रॉब्लम तो नहीं. बेचारे पतिदेव असमंजस में थे कि पूंछू तो कैसे. आखिर बीबी है. यह कैसे पूछ सकता हूँ कि तुम्हें ठीक से सुनायी देता है कि नहीं? सो महाशय गए डॉक्टर साहब के पास राय मांगने. डॉक्टर ने कहा - साधारण सी बात है. पहले 40 फीट की दुरी से कुछ पूछो फिर 20 फीट से फिर 10 फीट से फिर बिलकुल पास से. जब आपकी बीबी को सुनायी दे दे आकर बता देना. उसी के मुताबिक कान का मशीन दे दूंगा. पतिदेव उचित समय का इंतजार करने लगे. एक दिन पत्नी जी किचन में खाना पका रही थी. पति जी को मौका उचित जान पड़ा. गेट के पास से जो लगभग 40 फीट दूर होगा, आवाज लगाई - सुन रही हो आज खाना में क्या पका रही हो? नो आंसर. फिर दरवाजे के पास आये जो 20 फीट दूर होगा. वहां से वही प्रश्न पूछा - फिर कोई उत्तर नहीं. फिर 10 फीट की दुरी से पूछा. फिर कोई उत्तर नहीं. फिर पास आकर पूछा - तो पत्नी जी ने कहा - क्या गोपाल के पापा. कितनी बार बताऊँ. चौथी बार बता रही हूँ आलू मटर और पराठा बना रही हूँ. पति देव को काटो तो खून नहीं. कई बार हमारे जीवन में ऐसा होता है जब हम सामनेवाले को इस प्रकार से देखते हैं जैसे उसमे कोई भारी कमी या एब हो जबकि हम खुद ही किसी न किसी कमजोरी या दुर्गुण से ग्रस्त होते हैं. इसलिए अति आत्म विश्वास कभी कभी अच्छे अच्छों को ले डूबता है. अपने गिरेबान में झाक कर देखने वाला व्यक्ति इस तरह की परिस्थिति से कभी नहीं घिरता

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