Wednesday 23 September 2015

दानवीर बीमेशा

दानवीर बीमेशा यह बहुत पुरानी कहानी है. गुजरात में एक सेठ हुए – सेठ बीमेशा. उसके पास बहुत धन- संपत्ति थी. उसके दान के किस्से दूर- दूर तक मशहूर थे. उसकी दानवीरता की प्रसिद्धि चारों तरफ फैली हुई थी. उसके यश की कथाएँ फैलते-फैलते जंगल तक जा पहुंची. जंगल में भील जाति के मुखिया सोरेन ने बीमेशा के विषय में सुना तो उसके मन में लालच आ गया उसने सोचा, यदि किसी दिन बीमेशा जंगल से होकर गुजरेगा तो वह बंदी बना लेगा और मनचाहा धन लेकर उसे छोड़ेगा. भील मुखिया ने सेठ बीमेशा को देखा नहीं था जंगल से जो भी गुजरता वह उससे पूछता-“तुम सेठ बीमेशा को देखा नहीं था. जंगल से जो भी गुजरता वह उससे पूछता- “तुम सेठ बीमेशा तो नहीं हो ?” सेठ बीमेशा के पुत्रों को पता लग गया कि भीलों का मुखिया उनके पिता को बंदी बनाना चाहता है, उन्होंने पिता को जंगल के रस्ते अकेले जाने से मना कर दिया . बीमेशा इस बात को कहाँ मानने वाला था उसने कहा- मेरी जहाँ इच्छा होगी, मैं अकेले ही जाऊंगा.” एक बार सेठ बीमेशा का एक संबंधी बीमार पड़ गया बीमेशा को सूचना मिली तो वह उससे मिलने चुपचाप चल पड़ा. रास्ते में वही जंगल पड़ता था, जहाँ भील जाति के लोग रहते थे. पुराना जमाना था तब आज की तरह यातायात के साधन तो थे नहीं. सेठ घोड़े पर सवार होकर जा रहा था. जंगल आया. भीलों ने उसे घेर लिया. उसके मुखिया ने पूछा –“क्या तुम सेठ बीमेशा हो?” सेठ ने निडर होकर कहा- “तुमने ठीक पहचाना. मैं ही सेठ बीमेशा हूँ बताओ क्या काम है?” भीलों के मुखिया ने कहा- “हमें तुम्हारा ही इंतजार था, जब तक तुम सोने के एक लाख सिक्के न दोगे, हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे.” सेठ ने कहा- “मैं तुम्हें पत्र लिख देता हूँ. इसे लेकर मेरे पुत्रों के पास चले जाओ. वह तुम्हें सोने के एक लाख सिक्के दे देंगे.” मुखिया ने एक भील महिला को पत्र दिया और सेठ के पुत्रों के पास भेज दिया, पत्र पढकर बीमेशा के पुत्रों ने बूढ़े मुनीम से सलाह की. उसने महिला से कहा- “तुम इतने सिक्के नहीं ले जा सकोगी. हम घोड़ों पर रखकर ले आएँगे. तुम अपना पता-ठिकाना बता जाओ.” भील महिला ने पता बता दिया और लौट गई. मुनीम ने पीतल के एक लाख सिक्के बनवाए. और उन्हें लेकर जंगल में पहुंचा सिक्के पाकर मुखिया खुशी से नाच उठा. तब सेठ बीमेशा ने कहा- “यह तो जाँच लो कि सिक्के सोने के ही हैं.” मुखिया को आश्चर्य हुआ. वह बोला- “सेठ जी! हमें आप पर विश्वास है. आप ही देखकर बता दो कि ये सिक्के असली हैं या नकली.” सेठ ने सिक्कों की जाँच की. उसने कहा- “ये सारे सिक्के नकली हैं.” मुखिया सेठ की ईमानदारी देखकर दंग रह गया. सेठ झूठ बोलकर पीतल के सिक्कों को सोने के सिक्के बताकर अपनी जान बचा सकता था. उसने सेठ के विषय में जैसा सुना था, वैसा ही पाया. उसने सेठ के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा- “सेठ जी! हम लोगों से बहुत बड़ी भूल हो गई. हम लालच में पड़ गए थे. आप जैसे महान व्यक्ति को बंदी बनाकर हमने बहुत बड़ा पाप किया है. आप अपने घर जा सकते हैं हमें आपका धन नहीं चाहिए.” सेठ बीमेशा पीतल के सिक्के लेकर लौट आया. उसने मुनीम को डाँटते हुए कहा- “तुमने लोगों के साथ धोखा करना ही सीखा है. जाओ, भीलों के लिए सोने के सिक्के ले आओ. “मुनीम सिक्के ले आया. सेठ सोने के उन सिक्कों के साथ जंगल में पहुंचा. उसने भीलों में वे सिक्के बाँट दिए और कहा- “आप लोगों को जब भी धन की आवश्यकता पड़े तो मेरे पास आ जाना. “भीलों पर सेठ बीमेशा की सच्चाई और ईमानदारी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने लूट-मार का जीवन त्याग दिया और सच्चाई का रास्ता अपना लिया

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