Monday 28 September 2015

जब मुल्ला नसरुद्दीन ने लिया गधे को पढ़ाने का जिम्मा

जब मुल्ला नसरुद्दीन ने लिया गधे को पढ़ाने का जिम्मा

एक बार एक देश के राजा ने मुल्ला नसरुद्दीन (Mulla nasruddin) को दरबार में बुलाया और उससे कहा – “मुल्ला, मैंने तुम्हारे बारे में मैंने बहुत सुना है कि तुम बहुत चालाक हो और बुद्धिमान भी, इसलिए मैं तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहता हूँ. क्या तुम एक काम कर सकते हो जो मैं तुमसे कहने वाला हूँ ?” मुल्ला ने कहा – “आप हुकुम करें, मैं कुछ भी कर सकता हूँ …” इस पर राजा ने कहा – “क्या तुम अपने इस प्रिय गधे को पढना लिखना सिखा सकते हो ?” मुल्ला – “हाँ क्यों नहीं ? इसे तो मैं बड़े आराम से सिखा सकता हूँ …!” राजा गुस्से से बोला – “बकवास बंद करो ! क्या गारंटी है कि तुम इसे पढना-लिखना सिखा सकते हो ?” मुल्ला इत्मीनान से बोला – “एक काम कीजिये आप मुझे पचास हजार स्वर्ण मुद्राएँ दीजिये उसके बाद मैं गारंटी लेता हूँ कि आठ साल के अंदर मैं इस गधे को पढना सिखा दूंगा. अगर न सिखा सका तो आपको जो मर्जी आये वो कीजिये !” राजा बोला – “मुझे पचास हजार स्वर्ण-मुद्राएँ देना मंजूर है लेकिन अगर तुम सफल नहीं हुए तो तुम्हारी बाकी की ज़िन्दगी जेल में रोजाना पांच सौ कोड़े खाते हुए बीतेगी !” “मुझे मंजूर है”, मुल्ला ने कहा और पचास हजार स्वर्ण मुद्राएँ लेकर घर चला आया. घर आने पर मुल्ला के एक दोस्त ने कहा – “मुल्ला ये किया तुमने ? सब जानते हैं कि गधे को पढ़ाना-लिखाना मुमकिन नहीं है फिर भी तुमने राजा की शर्त मान ली ? क्या तुम्हें जेल जाने से डर नहीं लगता ?” मुल्ला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया – “तुम इतना ज्यादा मत सोचो क्योंकि आठ साल में तो या तो हमारा राजा नहीं रहेगा या हो सकता है कि मेरा गधा ही तब तक नहीं रहे. लेकिन फिर भी अगर ऐसा होता है कि सात साल तक दोनों में से कोई भी नहीं जाता तो भी मेरे पास पूरा एक साल होगा ये सोचने के लिए कि राजा की सज़ा से कैसे बचा जा सकता है…!!” मुल्ला की ये कहानी है तो मजाकिया, लेकिन साथ ही ये सिखाती है कि बहुत दूर के भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए, क्योंकि समय कब क्या गुल खिलाता है, किसी को नहीं मालूम !

1 comment: