Wednesday 23 September 2015

KITNI DER ME

एक बार Luqman Hakeem एक नदी के किनारे किनारे चले जा रहे थे के रास्ते में एक यात्री ने उन्हें रोक कर पूछा “अरे भाई क्या आप मुझे ये बता सकते हैं के मैं फलां शहर कितनी देर में पहुंच जाऊँगा?” Luqman Hakeem ने उस यात्री की बात का कोई उत्तर नहीं दिया और चलते रहे। यात्री ने यह सोच कर के शायद इस ने मेरी बात न सुनी हो या फिर न समझी हो दोबारा अपना प्रश्न दोहराया “जनाब मुझे यहाँ से शहर जाने में कितनी देर लगेगी?” Luqman Hakeem ने इस बार धीरे से कहा “अपनी राह लो” यात्री ने हैरान होते हुए फिर पूछा “भाई साहब मैं ने आप से एक प्रश्न किया है, शायद आप ने सुना नहीं। मैं एक यात्री हूँ और थक कर चूर हो चुका हूँ. मुझे शहर जाना है। शहर यहाँ से कितनी दूर है और मुझे वहां तक पहुँचने में कितनी देर लगे गी?” Luqman Hakeem ने फिर वही उत्तर दिया “मियां मैं तुम से कह तो रहा हूँ जाओ अपनी राह लगो” यात्री Luqman Hakeem की बात सुन कर गुस्से से लाल पिला होने लगा लेकिन उसने अपने आप पर काबू पाया और दिल में सोचा कितना अजीब आदमी है फ्री मिलने वाली नेकी को भी नहीं लेना चाहता शायद इसका दिमाग ख़राब है। यह सोच कर वह Luqman Hakeem से कुछ न कहा और चल पड़ा। अभी कुछ दूर ही गया होगा के पीछे से Luqman Hakeem की आवाज़ आई “यात्री! सुनो तुम दो घंटे में शहर पहुँच जाओगे” Luqman Hakeem की आवाज़ सुन कर अपने आप यात्री के पाऊँ थम गए, उसे बड़ी हैरत हुई और उलटे पाऊँ वापस आकर Luqman Hakeem से अश्च्र्यता के साथ पूछा “भाई मैं ने जब तुमसे बार बार पूछा के मैं शहर कितनी देर में पहुँच जाऊँगा तो तुमने कोई उत्तर नहीं दिया और अब जब के मैं आपसे मायूस होकर अपनी राह चल दिया तो तुमने पीछे से आवाज़ दी के मैं दो घंटे तक शहर पहुँच जाऊँगा, यह क्या बात हुई?”
Luqman Hakeem ने कहा “ऐ यात्री! जब तुम मुझ से बार बार अपना प्रश्न पूछ रहे थे तो उस समय तुम खड़े थे और मुझे पता नहीं था के तुम कितनी तेज़ चलते हो? इसी लिए मैं ने तुमसे कहा अपनी राह लो, ताके मैं तुम्हारी रफ़्तार देख लूँ, और जब बाद में तुम चल पड़े तो मैं ने अंदाज़ा लगाया के जिस रफ़्तार से तुम जा रहे हो तुम्हें शहर पहुँचने में कम से कम दो घंटे ज़रूर लग जाएंगे।” Luqman Hakeem की बात सुन कर यात्री आश्चर्य में पड़ गया और दिल ही दिल में इनकी बुद्धिमानी का गुण गाते हुए शहर की ओर चल पड़ा।

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