Thursday 17 September 2015

कीमती उपहार

कीमती उपहार एक राजा था| एक बार राजा अपने राजमहल के बगीचे में सैर कर रहा था| उसने देखा कि कोई आदमी दरवाजे पर खड़ा है| उसने दरवान से कहा कि वह उस आदमी के बारे में पता करे वह दरवाजे पर क्यों खड़ा है| दरवान ने दरवाजा खोला तो देखा एक आदमी एक मोटी ताज़ी मुर्गी लिए खड़ा था| दरवान ने उस आदमी से आने का कारण पूछा तो आदमी ने कहा, मैं राजा को यह मुर्गी देने आया हूँ| दरवान ने आदमी को राजा से मिलवा दिया| आदमी बोला, राजा जी राजा जी मैं ने आप के नाम पर यह मुर्गी जीती है| यह मैं आप को देने आया हूँ| राजा ने कहा इसको मेरे मुर्गी खाने में देदो| आदमी मुर्गी देकर चला गया| कुछ दिनों बाद वह आदमी फिर से आया | इस बार वह अपने साथ एक बकरी लेकर आया था| उसने राजा से कहा राजा जी राजा जी इस बार में ने आप के नाम पर यह बकरी लगाई थी और मैं जीत गया| यह बकरी मैं आप को देने आया हूँ| राजा बहुत खुश हुवा| उसने कहा इस बकरी को मेरे बकरियों के झुण्ड में शामिल कर दो| वह आदमी बकरी देकर चला गया| वह आदमी कुछ हफ़्तों बाद फिर राजा के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया इस बार उसके साथ दो आदमी और थे| दरवान ने उसको फिर राजा को मिलवा दिया| राजा ने आदमी से पूछा इसबार मेरे लिए क्या ले कर आये हो, और तुम्हारे साथ ये दोनों कौन हैं| आदमी ने राजा से कहा, राजा जी राजा जी इस बार मैंने आपके नाम पर ५०० चाँदी के सिक्के लगाये थे और मैं हार गया हूँ| अब इन लोगों को ५०० चाँदी के सिक्के देने हैं| यह सुन कर राजा को अपनी गलती का एहसास हो गया| पर वह उनको मना भी नहीं कर सकता था| क्यूँ कि उसने लेते समय मना नहीं किया था| उसने उन दोनों आदमियों को चाँदी के सिक्के देकर जाने को कह दिया| फिर राजा ने उस जुआरी आदमी से कहा आज के बाद तुम मेरे नाम पर कोई दाव नहीं लगाओगे, और ना ही कभी मेरे दरवाजे पर दिखोगे| इस तरह राजा को अपनी गलती की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी| इस लिए बगैर सोचे समझे किसी से कोई चीज नहीं लेनी चाहिए|

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